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स्वामी महावीर जी के महान उपदेश |

दोस्तों आज में आपको महावीर जी का बहुत अच्छा उपदेश के बारे में बताउगा | महावीर जैन धर्म के 24 तीर्थकर थे | दोस्तों महावीर सत्य और अहिंसा के प्रतिक थे | महावीर पशुवली और जातिभेद के घोल विरोधी थे | महावीर ने राजपाठ छोड़ कर विश्व के कल्याण के लिए तप और त्याग का मार्ग अपनाए | दोस्तों महावीर का जीवन हम सब के लिए प्रेरणा है | महावीर ने 12 वर्ष कठिन तपस्या किये | महावीर का जन्म ईसा से 599  वर्ष पहले वैशाली गणतंत्र राज्य में हुआ था | जो वर्तमान में बिहार में है | महावीर का माँ का नाम त्रिशला और पिताजी का नाम सिद्धार्थ था | महावीर के पिता यहाँ के क्षत्रिय राजा थे | महावीर का नाम वर्धमान रखा गया | वर्धमान नाम रखने के पीछे एक यह कारण था की जब महावीर जन्म लिए थे तो राज्य में अधिक उन्नति होने लगा था | इसलिए महावीर का नाम वर्धमान रखा गया | महावीर के भाई का नाम नंदिवर्धन और बहन का नाम सुदर्शना थी | जिस समय महावीर का जन्म हुआ था उस समय जातिभेद का बोलबाला था | उस समय महवीर जी ने उपदेश दिए की दुनिया के सभी आत्मा ,एक जैसे है | जैसे हम स्वंय आपने को पसंद करते है उसी प्रकार हम दुसरो को भी पसंद करे | जब महावीर जी का जन्म हुआ तो राज्य में 10 दिन तक उत्सव मनाया गया | महावीर विवाह नहीं करना चाहता था | लेकिन माता पिता के इच्छा के कारण महावीर को विवाह करना पड़ा | यशोदा नामक सुकन्या के साथ महावीर का विवाह हुआ | महावीर के घर एक बेटी का जन्म हुआ जिसका नाम प्रियदर्शिनी रखा गया | जब महावीर 28 वर्ष के उम्र के हुए तो उनके माता पिता की मृत्यु हो गया | माता पिता के मृत्यु के बाद महावीर के बड़े भाई ने राज पाट संभाला | 30 वर्ष के उम्र में महावीर स्वामी ने घर त्याग दिए | और जंगल में जाकर तपस्या करना शुरू कर दिया | महावीर जी ने 12 वर्ष तक कठिन तपस्या किये | घोर तपस्या करने के बाद महावीर को शांति और गुस्सा पर काबू करना सीखा और महावीर जी अहिंसा का रास्ता अपनाया महावीर मानव शांति के लिए केवल 3 ही घंटे सोते थे और लोगो को जाती भेद बलि प्रथा नहीं करने का उपदेश देते थे |  महावीर का मृत्यु 72 साल के उम्र में हो गया | पावापुरी में महावीर का देहांत हुआ | जिस स्थान पर महावीर का देहांत हुआ वह जगह जैन धर्मो के लोगो के लिए एक पवित्र स्थल है | 


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महावीर ने कहा था की सत्य मार्ग कभी नहीं छोडना चिहिए | दुनिया में सबसे ज्यादा शक्ति शाली अगर कोई चीज  है तो वह है सत्य | 

 व्यक्ति को हमेशा अहिंसा का मार्ग अपनाना चहिए | हिंसा दुःख का जननी है और दुःख से बचना है तो अहिंसा का मार्ग अपना बहुत ही जरूरी है | हिंसा का भाव किसी से नहीं रखना चहिए वह चाहे मनुष्य हो या पशु पक्षी | जियो और जीनो दो | 

किसी आत्मा का सबसे बड़ी गलती स्वंय को नहीं पहचाना है | इसलिए पहले खुद को पहचना चाहिए | 

 दुनिया में चाहे जो भी हो नश्वर है तो मोह किस बात का किसी भी चीज में मोह नहीं रखना है | 

 सभी को आपने जीवन में ब्रहाचार्य को अपनाना चहिए | यह मोक्ष का मार्ग है | 

कोई खुशी बाहर नहीं है बल्कि वह हर आत्मा के अंदर होती है | 

घृणा से मनुष्य का नाश  है इसलिए सब से दयाभाव रखना  है | 

जीतने पर ना ही गर्व करे और ना ही हारने पर दुःख होना चहिए | 

केवल सत्य का अभ्यास करना चाहिए | और कुछ भी नहीं | 

 चोरी नहीं करना है | किसी चीज का लालच नहीं करना है | 

आपना दुश्मन कोई बाहर नहीं है बल्कि अंदर में है | घमंड लालच क्रोध हिंसा अशक्ति नफ़रत ये सब असली दुश्मन है इसे नाश करना है | 

खुद पर विजय पाना लाखो दुश्मन पर विजय पाने से ज्यादा है | 

सभी जीवित प्राणी से प्रति समान भाव रखना है | 

किसी जीव का हत्या ना करे किसी को ठेस नहीं पहुँचाना है अहिंसा ही सबसे बड़ा धर्म है | 

सुख में दुःख में औरो के प्रति वैसा ही व्यहार रखना है जैसे आपने प्रति रखते है | 

केवल वही व्यक्ति निर्णय ले सकता है | जिसकी आत्मा बंधन और विरक्त की यातना से संतप्त ना हो | 

खुद की गलती का सुधार करना चहिए | 

आत्मा अकेले आती है और अकेले जाती है | 

किसी का बुराई नहीं करना चाहिए और ना ही चल - कपट में लिप्त होना चाहिए | 

ऐसी बात बोलना चाहिए जिससे जीवित प्राणियों का लाभ हो सके | 

वो जो सत्य जानने में मदद कर सके मन को नियंत्रित करे और आत्मा को शुद्ध कर सके इसे ही ज्ञान कहा जाता है | 

केवल सत्य ही दुनिया का सार है | 

जो व्यक्ति जागरूक नहीं है उसे सभी दिशाओ से डर लगता है | 

किसी जीवित प्राणी को मरना नहीं चहिए | 

जैसे कछुआ आपने आप को समेट लेता है उसी प्रकार एक महान व्यक्ति आपने मन के सभी पापो से हटा लेते है | 

शांति और आत्मनियंत्रण ही सही माने में अहिंसा है | 


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